बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़। 18 मार्च 2024
पुरानी पद्धति का जाॅता चक्की आज भी कायम है बहुत से गाँवो की महिलाएं चावल, गेंहू, तिवरा, उड़द दाल से आटा पीसनें में इसका उपयोग कर रहे है।
विदित हो कि पुरानें जमानें में हर एक घर में जाॅता चक्की पाया जाता था, धीरे-धीरे समय बदलता गया और विद्युत उपकरण वाले मशीनों के आनें से शहर अथवा गांव में इसका उपयोग धीरे-धीरे थम सा गया, वहीं आज भी ग्रामीण क्षेत्रों की अधिकतर महिलाएं जाॅता चक्की का उपयोग करते हुए नजर रहे हैं, पहले हर घर की महिलाएं जाॅता चक्की चलाती थी, जिससे रोज उनका एक प्रकार का व्यायाम भी हो जाता था, जाॅता चक्की से पिसा हुआ अनाज भी अत्यधिक पौष्टिक माना जाता था, वहीं लवन नगर निवासी श्रीमती यशोदा साहू, 55 वर्ष नें बताया कि आज भी वह नियमित रूप से जाॅता चक्की का उपयोग करती है, जिससे उनका शरीर भी स्वस्थ है, उन्होंने बताया कि यदि कोई नियमित रूप से हाथ से जाॅता चक्की चलाकर आटा पीसते हैं तो उनके हाथ और बाजुओं को मजबूती प्रदान होती है, पेट की जिद्दी चर्बी भी कम होती है जोड़ों में कंधों, हाथों में जकड़न की समस्या से जूझ रहे व्यक्तियों के लिए राहत पानें का यह पारंपरिक तरीका का उपयोग सबसे अच्छा है, शरीर स्वस्थ रहता है जाॅता चक्की चलानें से व्यायाम जितना लाभ होता है।
इस बारे में जानकारों का कहना है कि जाॅता चक्की चलानें से अनिद्रा की समस्या से जूझ रहे व्यक्तियों को काफी हद तक आराम महसूस होता है, स्ट्रेस और डिप्रेशन से जूझ रहे मरीजों के लिए भी आटा पीसनें का यह पारंपरिक तरीका काफी अच्छा साबित हो सकता है, लेकिन यदि कोई स्त्री गर्भवती है तो बिल्कुल भी कोशिश ना करें, गर्भावस्था के दौरान आटा पीसनें का पांरपरिक तरीका ना अपनाएं पीठ, स्लिप डिस्क या फिर रीढ़ से जुड़ी समस्याओं में इस तरीके के ना अपनाएं, हाई ब्लड प्रेशर की स्थिति में आप इसे अवॉइड करें, खाना खानें के तुरंत बाद भी जाॅता चक्की का उपयोग नही करें।
ग्राम कोलिहा निवासी रुक्मणी वर्मा, किरण वर्मा, खोल बहरीन वर्मा द्वारा संयुक्त रूप से जानकारी देते हुए बताया गया कि पुरानी पद्धति से जाॅता चक्की एवं ढ़ेंकी के उपयोग कर बनाए गए चावल एवं आटे के उपयोग से आज भी किसी प्रकार की गैस एवं अन्य किसी प्रकार की शारीरिक मानसिक परेशानियां नहीं होती है, बल्कि स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती है और स्वाद में भी काफी अंतर रहता है।